चुनाव आयोग ने साफ कहा है कि बिहार और अन्य स्थानों पर होने वाले चुनावों में 65 साल से अधिक उम्र के लोगों को फिलहाल पोस्टल वेलेट सुविधा नहीं मिलेगी
चुनाव आयोग ने बिहार चुनाव के लिए फिलहाल 65 साल से उपर के वोटरों के लिए पोस्टल बैलेट की सुविधा के फैसले को लागू करने से रोक दिया है. कोविड-19 से बने हालात को देखते हुए चुनाव आयोग ने 65 साल से ऊपर के वोटरों के लिए पोस्टल बैलेट की सुविधा के लिए नियमों के बदलाव को हरी झंडी दी थी. आयोग इसके साथ ही ज़मीनी स्थिति का लगातार जायज़ा भी ले रहा था, उसने पहले ही हर पोलिंग स्टेशन पर हजार से ज्यादा वोटरों की मनाही कर दी है. इसके कारण 34 हजार ज्यादा पोलिंग स्टेशन बनाए जा रहे हैं और इनकी संख्या 45 फीसदी बढ़कर एक लाख 6 हजार हो जाएगी. इनके लिए बड़ी संख्या में सुरक्षा बल और बाकी संसाधनों की भी ज़रूरत होगी. इन चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए फिलहाल आयोग ने 65 साल से ऊपर के वोटरों के लिए पोस्टल बैलेट की सुविधा वाले नोटिफेकेशन को जारी नहीं किया है, लेकिन उन वोटरों के लिए जिनकी उम्र 80 साल से ज्यादा है, कोविड-19 संक्रमित या संदिग्ध और ज़रूरी सुविधाओं में लगे वोटरों को पोस्टल बैलेट की सुविधा रहेगी.
गौरतलब है कि कोरोनावायरस संक्रमण के बीच चुनाव आयोग ने 65 साल की उम्र से अधिक के लोगों को पोस्टल बैलेट (Postal Ballot) द्वारा अपने मताधिकार का प्रयोग करने की अनुमति दे दी है. इसके साथ-साथ कोरोना पॉजिटिव मरीज को भी पोस्टल बैलट के जरिए अपने वोटिंग राइट का इस्तेमाल करने की सुविधा देने की बात कही गई थी.उस समय ऐसा माना जा रहा था कि चुनाव आयोग का यह फैसला बिहार चुनाव में लागू होगा. बता दें कि कोरोनावायरस संक्रमण का खतरा 65 वर्ष से अधिक आयु के लोगों, गर्भवती महिलाओं, मधुमेह, उच्च रक्तचाप और किडनी की बीमारियों सहित पुरानी बीमारी से ग्रसित लोगों के ज्यादा है. मेडिकल एक्सपर्ट्स और सरकार ने भी लगातार ऐसे लोगों को बाहर ना निकालने के लिए कहा है.
आपको बता दें कि इससे पहले पोस्टल बैलेट का अधिकार 80 वर्ष तक के बुजुर्ग और दिव्यांगजनों को प्राप्त था. पिछले साल 22 अक्टूबर को कानून मंत्रालय द्वारा अधिसूचना के मुताबिक चुनाव में मत प्रतिशत बढ़ाने के लिए 80 साल के अधिक आयु के बुजुर्ग और दिव्यांग मतदाताओं के लिए पोस्टल बैलेट से मतदान की सुविधा दी गई थी. उस वक्त मंत्रालय ने मतपत्र से मताधिकार देने के लिए निर्वाचन संचालन नियम 1961 में संशोधन करते हुए इन्हें ‘अनुपस्थित मतदाता’ की श्रेणी में शामिल किया था.